कुचला सबने बारी बारी, आया क्यों वो निगाहों में।
सबको किस्मत से है शिकायत, सब अपनों से खफा लगते हैं
वफादारी निभाते देखा न किसी को, खुद को ही सब यहाँ ठगते हैं।
वो राहें वो मंजर फिर से बुलाते हैं मुझे,
साथ गुज़ारे पल बहुत याद आते हैं मुझे
जिस को भी चाहा दिल से समझा अपना,
ना जाने क्यों राह में छोड़ जाते हैं मुझे|
तेरे ग़म से ऐ दोस्त अनजान नहीं हूं मैं,
तेरा अपना हूँ कोई मेहमान नहीं हूं मैं
कहने को कहो कुछ भी सह लूँगा सब मगर,
इतना जरूर है दोस्त नादान नहीं हूं मैं।
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