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मन जहां डर से परे है

मन जहां डर से परे है

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मन जहां डर से परे है
और सिर जहां ऊंचा है;
ज्ञान जहां मुक्‍त है;
और जहां दुनिया को
संकीर्ण घरेलू दीवारों से
छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;
जहां शब्‍द सच की गहराइयों से निकलते हैं;
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें
त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;
जहां कारण की स्‍पष्‍ट धारा है
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के
वीराने में अपना रास्‍ता खो नहीं चुकी है;
जहां मन हमेशा व्‍यापक होते विचार और सक्रियता में
तुम्‍हारे जरिए आगे चलता है
और आजादी के स्‍वर्ग में पहुंच जाता है
ओपिता
मेरे देश को जागृत बनाओ

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कर्म करिए

 उस विधाता की अदालत में वकालत बड़ी न्यारी है,  कर्म करिए, विश्वास रखिए, मुकदमा सबका जारी है