गीतांजलि
अनसुनी करके तेरी बातन दे जो कोई तेरा साथतो तुही कसकर अपनी कमरअकेला बढ़ चल आगे रे–अरे ओ पथिक अभागे रे ।देखकर तुझे मिलन की बेरसभी जो लें अपने मुख फेरन दो बातें भी कोई क रेसभय हो तेरे आगे रे–अरे ओ पथिक अभागे रे ।तो अकेला ही तू जी खोलसुरीले मन मुरली के बोलअकेला गा, अकेला सुन ।अरे ओ पथिक अभागे रेअकेला ही चल आगे रे ।जायँ जो तुझे अकेला छोड़न देखें मुड़कर तेरी ओरबोझ ले अपना जब बढ़ चलेगहन पथ में तू आगे रे–अरे ओ पथिक अभागे रे ।तो तुही पथ के कण्टक क्रूरअकेला कर भय-संशय दूरपैर के छालों से कर चूर ।अरे ओ पथिक अभागे रेअकेला ही चल आगे रे ।और सुन तेरी करुण पुकारअंधेरी पावस-निशि में द्वारन खोलें ही न दिखावें दीपन कोई भी जो जागे रे-अरे ओ पथिक अभागे रे ।तो तुही वज्रानल में हालजलाकर अपना उर-कंकालअकेला जलता रह चिर काल ।अरे ओ पथिक अभागे रेअकेला बढ़ चल आगे रे ।
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